श्यानता (अंग्रेजी:Viscosity) किसी तरल का वह गुण है जिसके कारण वह किसी बाहरी प्रतिबल (स्ट्रेस) या अपरूपक प्रतिबल (शीयर स्ट्रेस) के कारण अपने को विकृत (deform) करने का विरोध करता है। सामान्य शब्दों में, यह उस तरल के गाढे़पन या उसके बहने का प्रतिरोध करने की क्षमता का परिचायक है। उदाहरण के लिये, पानी पतला होता है एवं उसकी श्यानता वनस्पति तेल की अपेक्षा कम होती है जो कि गाढा़ होता है। किसी द्रव या गैस को दो क्रमागत परतों के बीच उनकी आपेक्षिक गति का विरोध करने वाले घर्षण-बल को श्यान बल कहते हैं

उपर के द्रव की श्यानता नीचे के द्रव की श्यानता से बहुत कम है।

श्यानता आम तौर पर यह देखा जाता है कि सभी वस्तुएँ, चाहे वे गैस, द्रव अथवा ठोस हों, यदि उनका विरूपण (deformation) होता है, अथवा उनके पिंड (body) के विभिन्न हिस्सों में सापेक्ष गति (relative motion) कराई जाती है, तो उनमें अवरोध करने की प्रवृत्ति होती है। कुछ वस्तुओं में इस प्रवृत्ति की कोटि (degree) ज्यादा होती है और कुछ में कम। जब हम पानी को चिकनी सतह पर गिराते हैं, तो यह देखा जाता है कि पानी तेजी से बहता है, लेकिन यदि हम शीरा (treacle) या ग्लिसरीन की उतनी ही मात्रा उसी प्रकार की चिकनी सतह पर गिराएँ, तो यह सतह पर फैलने में ज्यादा समय लेता है। शीरे की किस्म की वस्तुओं को, जो फैलने में ज्यादा समय लेती हैं, साधारण लोगों की भाषा में चिपचिपी या श्यान (viscous) कहते हैं, जब कि पानी जैसी वस्तुओं को तरल अथवा गतिशील (mobile) की संज्ञा दी जाती है। इस प्रकार हम यह कह सकते हैं कि शीरा पानी से ज्यादा श्यान है। दूसरों शब्दों में यह भी कहा जाता है कि स्वरूपपरिवर्तन शीरे में धीरे धीरे होता है, जब कि पानी जैसी वस्तुओं में तेजी से। श्यानता तरलों (fluids) का वह गुण है जिसके कारण तरल उन बाह्य बलों (forces) का विरोध करता है जो उसके स्वरूप को बदलना चाहते हैं। इस प्रकार हम श्यानता को किसी भी द्रव अथवा गैस के आंतरिक घर्षण (internal friction), के रूप में भी देख सकते हैं। द्रवों तथा गैसों, दोनों में, श्यानता का गुण पाया जाता है, लेकिन द्रव गैसों की अपेक्षा ज्यादा श्यान होते हैं। इसी श्यानता के कारण द्रव की एक परत (layer) दूसरी परत पर होकर आगे बढ़ती है।

हम सब लोगों की धमनियों तथा शिराओं में रुधिरपरिसंचरण (circulation of blood) रुधिर की श्यानता पर ही निर्भर करता है। इस प्रकार जनजीवन में श्यानता महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है।

द्रवों की श्यानता (Viscosity of liquids)

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काल्पनिक पट्टियों की आपेक्षिक गति से श्यान बल

दो ऐसी असीमित समांतर पट्टिकाओं (plates) की कल्पना करें जिनके बीच में एक द्रव पदार्थ रखा हुआ है (देखें चित्र)। मान लीजिए पट्टिका abcd अपने ही समतल (plane) में, दाहिनी दिशा में, एक स्थिर वेग (constant velocity) v से आगे बढ़ रही है, जिसे चित्र में तीर द्वारा दिखाया गया है, तथा पट्टिका a'b'c'd' अपनी स्थिर अवस्था में है। तात्पर्य यह है कि पट्टिका abcd का सापेक्ष वेग व है। ऐसी अवस्था में यह कहा जाता है कि द्रव पदार्थ पूरा का पूरा वेग v से तीर द्वारा प्रदर्शित दिशा में गतिमान है। यदि द्रव का प्रवाह धारारेखी गति (streamline motion) से हो रहे हो, तो द्रव की वह परत जो स्थिर पट्टिका a'b'c'd' के संपर्क में है, अचल अवस्था में रहती है, जबकि अन्य दूसरी परतों का प्रवाह सतह के समांतर होता रहता है। लेकिन इन परतों का वेग, जैसे-जैसे हम ऊपर की ओर आते हैं, धीरे-धीरे बढ़ता चला जाता है। अंतिम परत, जो पट्टिका abcd के संपर्क में होती है, उसका वेग v ही होता है। अब हम द्रव में किसी क्षैतिज समतल (horizontal plane) पर ध्यान देंगे। इस समतल के अणुओं को इसके ठीक ऊपरवाली परत के अणुओं द्वारा त्वरण (acceleration) मिलता है, क्योंकि ऊपरवाली परत के अणुओं का वेग इस समतल के अणुओं के वेग से ज्यादा होतो है, जबकि क्षैतिज समतल के ठीक नीचे की परत के अणुओं द्वारा क्षैतिज समतल के अणुओं की गति में मंदन लाया जाता है। इसी प्रकार द्रव की प्रत्येक परत अपने ठीक ऊपरवाली परत पर एक स्पर्शरेखीय पश्च बल (tangential backward force) डालती है, जिसके कारण इन दोनों परतों के बीच की सापेक्ष गति नष्ट होती है। परिणामस्वरूप यदि हमें द्रव की समांतर परतों के बीच सापेक्ष गति रखनी हो, तो यह अत्यावश्यक है कि एक बाहरी बल (external force) को इस पश्चकर्षण (backward drag) पर हावी (overcome) होना चाहिए। यदि बाहरी बल नहीं होगा, तो कुछ समय के बाद द्रव की विभिन्न परतों के बीच सापेक्ष गति समाप्त हो जाएगी। किसी द्रव का वह गुण जिसके सामर्थ्य की बदौलत, द्रव अपनी विभिन्न परतों के बीच की सापेक्ष गति का विरोध करता है, द्रव की श्यानता, अथवा आंतरिक घर्षण (Internal friction), कहलाता है। यह गुण, जो एक द्रव से दूसरे द्रव में केवल डिग्री या कोटि में ही अंतर रखता है, हर एक तरल का एक अंतर्निहित गुणधर्म है।

धारारेखी गति के लिए, न्यूटन के श्यान प्रवाह (Viscous flow) के नियम के अनुसार, द्रव की समानांतर परतों के बीच स्पर्शरेखीय श्यान बल F को नीचे दिए गए संबंध द्वारा दिखलाया जाता है :

F = -h. A. dv/dz ...... ...... (1)

जहाँ A = समांतार परतों का क्षेत्रफल, dz = परतों के बीच की दूरी, dv = परतों की सापेक्ष गति, dv/dz = वेग प्रवणता (velocity gradient) तथा h एक स्थिरांक (constant) है, जिसे "द्रव की श्यानता का गुणांक" कहा जाता है। यह, अथवा इसका मान, द्रव की प्रकृति तथा भौतिक दशाओं (physical conditions) पर निर्भर करता है। यदि हम ऊपर दर्शाए गए संबंध (1) में A = 1, dv/dz = 1 रखें, तो F = -h होगा। अतएव किसी द्रव की "श्यानता के गुणांक" की परिभाषा इस प्रकार दी जा सकती है :

"किसी द्रव के दो समांतर तलों के बीच इकाई वेग प्रवणता रखने के लिए जो स्पर्शरेखीय बल प्रति इकाई क्षेत्रफल के लिए आवश्यक होता है, उसे उस द्रव की श्यानता का गुणांक कहते हैं।"

यद्यपि ऊपर दो पट्टिकाओं तथा उनके बीच द्रव की उपस्थिति जैसी व्यवस्था की कल्पना कर, आसानी से "श्यानता के गुणांक" की परिभाषा की गई है, तथापि प्रयोगात्मक रूप में ऐसी व्यवस्था को पाना संभव नहीं है। पहले पहल पानी जैसी तरल वस्तुओं का "श्यानता के गुणांक" पानी के बहाव को, केशिका नलिकाओं से गुजरने के बाद, मापकर निकाला गया और आजकल भी यह तरीका विशद रूप से प्रयोग में लाया जाता है।

मान लीजिए कि, कोई द्रव, जैसे पानी, किसी वृत्तीय छेद की संकीर्ण नली से होकर गुजर रहा है। यदि पानी धारारेखी गति से संकीर्ण नली से होकर प्रवाहित हो रहा है तथा नली के किसी अनुप्रस्थ परिच्छेद के ऊपर दबाव एक समान हो और द्रव की वह परत जो नली की गोलीय दीवार के संपर्क में हो एवं प्रयोगात्मक रूप से स्थिर हो, तो पानी का श्यानतागुणांक नीचे दिए हुए संबंध द्वारा निकाला जा सकता है :

  ..... ..... (2)

जहाँ Q = पानी का वह आयतन जो प्रति सेकंड नली से होकर गुजरता है, r = सँकरी नली का अर्धव्यास   = दबाव का अंतर जो नली के दोनों सिरों के बीच होता है, l = संकीर्ण नली की लंबाई तथा   = श्यानता का गुणांक है।

श्यानता का मापन

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श्यानता का मापन विस्कोमिटर की सहायता से किया जाता है।

श्यानता और ताप (Viscosity and Temperature)

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प्रयोगों द्वारा यह पाया गया है कि, काफी हद तक, द्रवों की श्यानता ताप पर निर्भर है। यद्यपि इस क्षेत्र में काफी प्रयोग किए जा चुके हैं, तथापि कोई ऐसा साधारण सूत्र नहीं मिला जो श्यानता तथा ताप के संबंध की उच्च यथार्थता को प्रदर्शित करे। प्राय: यह पाया जाता है कि पूरे क्षेत्र में ताप के बढ़ने के साथ साथ श्यानता घटती चली जाती है, लेकिन श्यानता में यह घटाव प्रति अंश निम्न ताप पर ऊँचे ताप की अपेक्षा ज्याद होता है। श्यानता तथा ताप के संबंध में सर्वप्रथम स्लॉट (Slotte) द्वारा एक मूलानुपाती सूत्र (empirical formula) दिया गया, जो बाद में संशोधित हुआ तथा शुद्ध द्रवों के संबंध में ही लागू होता है। आगे चलकर ऐंड्राडे के सिद्धांत (Andrade's theory) पर एक जटिल श्यानता-ताप-संबंध दिया गया, जो प्रयोगों से काफी संतोषप्रद पाया गया है और वह इस प्रकार है :

h v1/3 = AeC/vT ..... ..... .... (6)

जहाँ A तथा C स्थिरांक (constants) हैं, T = ताप तथा v = विशिष्ट आयतन (specific volume) है।

ताप के बढ़ने के साथ साथ गैसों का श्यानता का गुणांक बढ़ता है। इसके संबंध में सदरलैंड (Sutherland) ने एक सूत्र दिया है, जो इस प्रकार है :

 

जहाँ:

  •   = ताप T पर श्यानता गुणांक का मान (Pa·s)
  •   = सन्दर्भ ताप   पर श्यानता गुणांक का मान (Pa·s)
  •   = ताप [K]
  •   = सन्दर्भ ताप [K]
  •   = सदरलैंड स्थिरांक [K]..... ...... (7)

श्यानता और दबाव (Viscosity and Pressure)

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जिन द्रवों की श्यानता ज्यादा होती है, जैसे खनिज तेल की, उनकी श्यानता का गुणांक दबाव के बढ़ने के साथ साथ बढ़ता है। केवल पानी को छोड़कर अन्य सभी द्रवों में करीब करीब ऐसी ही स्थिति पाई गई है। पानी में पहले कई सौ वायु दबाव (few hundred atmospheric pressures) तक श्यानतागुणांक घटता जाता है, तदुपरांत इसका श्यानतागुणाक अन्य द्रवों की तरह दबाव के साथ साथ बढ़ता है।

गैसों के बारे में यह पाया गया है कि साधारणतया उच्च दबाव का श्यानतागुणांक पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता, किंतु न्यून दबाव पर श्यानतागुणांक दबाव के घटने के साथ साथ ही घटता जाता है। जिस दबाव पर यह प्रभाव आरंभ होता है, वह इन दो बातों पर निर्भर करता है :

  • (१) बरतन के आकार पर, जिसमें गैस भरी होती है, तथा
  • (२) गैस की प्रकृति पर।

श्यानता और रासायनिक रचना (Viscosity and Chemical Constitution)

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सर्वप्रथम टॉमस ग्राहम (Thomas Graham) ने यह सुझाव दिया कि एक ही प्रकार की रचना के यौगिकों का श्यानता गुणांक नियमित ढंग से बढ़ सकता है, यदि उनके अणुओं या समूहों की संख्या बढ़ाई जाए। प्रयोगों से थॉर्प तथा रॉजर (Thorpe and Rodger) ने यह पाया कि किसी सजातीय श्रेणी का श्यानतागुणांक उसके अणुभार के साथ बढ़ता जाता है। यह वृद्धि नियमित ढंग से होती है, जबकि सजातीय श्रेणी के प्रथम दो या तीन यौगिक अनियमता दर्शाते हैं।

इन्हें भी देखें

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बाहरी कड़ियाँ

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  NODES
INTERN 2