राम हिंदू भगवान विष्णु के सातवें अवतार हैं। वे अयोध्या के राजा दशरथ और रानी कौशल्या के पुत्र थे। रामायण में उनकी कथा है। उन्हें 14 साल के वनवास पर भेज दिया गया। रावण ने श्री राम की पत्नी “सीता” का अपहरण कर लिया और लंका ले गया। बहुत समझाने पर भी रावण सीता को लौटाने को तैयार नहीं हुआ तब श्री राम ने रावण से युद्ध की और “शुक्ला दशमी“ के दिन रावण का वध किया।

धनुष और बाण धारण किए राम का चित्र
  • द्विः शरं नाभिसन्धत्ते द्विः स्थापयति नाश्रितान्।
द्विर्ददाति न चार्थिभ्यो, रामो द्विर्नाभिभाषते ॥
(राम) बाण को दो बार निशाने पर नहीं साधते, (राम) शरणागत आश्रित को दो बार स्थापित नहीं करते, (राम) माँगनेवाले को दो बार नहीं देते, राम (एक ही बात) दो बार नहीं कहते। अर्थात् एक ही बार में कार्य पूर्ण करते हैं, दूसरी बार करने की आवश्यकता ही रहती।
  • न सुप्रीतकरं तत्तु मात्रा पित्रा च यत्कृतम्
कोई व सन्तान अपने माता एवं पिता का ऋण कभी नहीं चुका सकता चाहे वह अपने माता पिता के लिए कितना व श्रेष्ठ कार्य क्यों न कर दे। वह कभी इस ऋण से मुक्त नहीं हो सकता है।
  • लक्ष्मीश्चन्द्रादपेयाद्वा हिमवान् वा हिमं त्यजेत् ।
अतीयात् सागरो वेलां न प्रतिज्ञामहं पितुः ॥
(श्री राम ऋषि वशिष्ठ जी से कहते हैं कि) चन्द्रमा अपनी शोभा छोड़ सकता है, गिरिराज हिमालय हिमहीन हो सकता है और सागर अपना तट बदल सकता है लेकिन में अपने माता-पिता के वचनों का उल्लंघन कभी नहीं कर सकता।
  • कुलीनमकुलीनं वा वीरं पुरुषमानिनम् ।
चारित्रमेव व्याख्याति शुचिं वा यदि वाऽशुचिम् ॥
(श्री राम ऋषि जाबालि से कहते है कि) मनुष्य का चरित्र ही इसकी व्यख्य करता है कि कोई पुरुष कुलीन है या अकुलीन, कपटी है या सज्जन, वीर है यह डरपोक।
  • दुर्लभं हि सदा सुखम् ॥ -- वाल्मीकि रामायण
सदा रहने वाला सुख दुर्लभ है। ( सुख सदा नहीं बना रहता।)
भगवान राम जब अपने पिता दशरथ जी को टूटा हुआ देखते है तब प्रभु राम माता कैकेयी से कहते है कि अगर इस जीवन में अगर कोई मनुष्य सदैव खुश रहना चाहता है तो वह ब्रह्म में है।
  • परहित बस जिन्ह के मन माही। तिन्ह कहुँ जग दुर्लभ कुछ नाही॥
जिनके मन में सदैव दूसरे का हित करने की अभिलाषा रहती है। अथवा जो सदा दूसरों की सहायता करने में लगे रहते हैं, उनके लिए संपूर्ण जगत में कुछ भी दुर्लभ नहीं है।
  • देखिअहिं रूप नाम आधीना, रूप ज्ञान नहिं नाम बिहीना।
व्यक्ति सामने ना होने पर भी नाम से उसको जाना जा सकता है, परंतु नाम के बिना व्यक्ति की पहचान नहीं हो सकती।

स्तोत्र

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लोकाभिरामं रणरंगधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम्।
कारुण्यरूपं करुणाकरं तं श्रीरामचन्द्रं शरणं प्रपद्ये॥
शान्तं शाश्वतमप्रमेयमनघं निर्वाणशान्तिप्रदं
ब्रह्माशम्भुफणीन्द्रसेव्यमनिशं वेदान्तवेद्यं विभुम्‌।
रामाख्यं जगदीश्वरं सुरगुरुं मायामनुष्यं हरिं
वन्देऽहं करुणाकरं रघुवरं भूपालचूडामणिम्‌॥
नीलाम्बुजश्यामलकोमलाङ्गं सीतासमारोपितवामभागम्।
पाणौ महासायकचारूचापं नमामि रामं रघुवंशनाथम्॥
रामाय रामभद्राय रामचन्द्राय वेधसे।
रघुनाथाय नाथाय सीतायाः पतये नमः॥
नमामि भक्त वत्सलम्। कृपालु शील कोमलम्॥
भजामि ते पदाम्बुजं। अकामिनां स्वधामदम्॥
निकाम श्याम सुंदरं। भवाम्बुनाथ मन्दरम्॥
प्रफुल्ल कञ्ज लोचनं। मदादि दोष मोचनम्॥
प्रलंब बाहु विक्रमं। प्रभोऽप्रमेय वैभवम्॥
निषंग चाप सायकं। धरं त्रिलोक नायकं॥
दिनेश वंश मण्डनं। महेश चाप खण्डनम्॥
मुनीन्द्र सन्त रञ्जनं। सुरारि वृन्द भंजनम्॥
मनोज वैरि वंदितं। अजादि देव सेवितम्॥
विशुद्ध बोध विग्रहं। समस्त दूषणापहम्॥
नमामि इन्दिरा पतिं। सुखाकरं सतां गतिम्॥
भजे सशक्ति सानुजं। शची पतिं प्रियानुजम्॥
त्वदंघ्रि मूल ये नराः। भजन्ति हीन मत्सराः॥
पतन्ति नो भवार्णवे। वितर्क वीचि संकुले॥
विविक्त वासिनः सदा। भजन्ति मुक्तये मुदा॥
निरस्य इन्द्रियादिकं। प्रयांति ते गतिं स्वकं॥
तमेकमभ्दुतं प्रभुं। निरीहमीश्वरं विभुम्॥
जगद्गुरुं च शाश्वतं। तुरीयमेव केवलम्॥
भजामि भाव वल्लभं। कुयोगिनां सुदुर्लभम्॥
स्वभक्त कल्प पादपं। समं सुसेव्यमन्वहम्॥
अनूप रूप भूपतिं। नतोऽहमुर्विजा पतिम्॥
प्रसीद मे नमामि ते। पदाब्ज भक्ति देहि मे॥
पठन्ति ये स्तवं इदं। नरादरेण ते पदम्॥
व्रजन्ति नात्र संशयं। त्वदीय भक्ति संयुता॥

राम के बारे में कथन

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  • रामो विग्रहवान् धर्मः । -- वाल्मीकि रामायण
राम, धर्म के मूर्त रूप हैं। अर्थात धर्म ने शरीर धारण करके राम के रूप में अवतार लिया है।
  • राम रामेति रामेति, रमे रामे मनोरमे ।
सहस्रनाम तत्तुल्यं, रामनाम वरानने ॥ --
राम राम कहो। एक बार राम कहने से विष्णुसहस्रनाम का सम्पूर्ण फल मिल जाता है। क्योंकि श्रीराम नाम ही विष्णु सहस्रनाम के तुल्य है।
(इस मंत्र को 'श्री राम तारक मंत्र' भी कहा जाता है और इसका जाप सम्पूर्ण विष्णु सहश्रनाम या विष्णु के 1000 नामों के जाप के समतुल्य है। यह मंत्र 'श्री राम रक्षा स्तोत्रम्' के नाम से भी जाना जाता है।)
  • सहस नाम सम सुनि शिव बानी। जपि जेई पिय संग भवानी॥ -- रामचरितमानस १-१९-६
जव शंकर जी ने कहा कि राम-नाम अकेले विष्णु के हजार नामों के बराबर है, तब राम नाम का जाप करके पार्वती जी ने प्रसन्न होकर शिवजी के साथ भोजन किया।
  • मंत्र महामनि विषय ब्याल के । मेटत कठिन कुअंक भाल के ॥ -- रामचरितमानस – बालकाण्ड
श्री राम के च्रित्र क चिन्त्न विषय रूपी सर्पों के लिये मंत्र और महाऔषध हि। जिस प्रकार मंत्र, महाऔषध और मणि सर्प विष को उतार देता है, ठीक उसी प्रकार श्रीराम चरित्र का स्मरण-चिन्तन करने से विषय भोग रूपी जहर को उतर जाता है। और ललाट पर लिखे हुए कठिन कुअंक (बुरे अंक / दुर्भाग्य) मिट जाते हैं।
  • सीय राममय सब जग जानी। करउँ प्रनाम जोरि जुग पानी॥ -- रामचरितमानस (बालकाण्ड)
(तुलसीदास जी कहते हैं कि) मैं पूरे संसार को सीता और राम से युक्त जानता हूँ। इसलिये दोनों हाथ जोड़कर (सारे संसार को) प्रणाम कर रहा हूँ।
  • राम के बिना हिन्दू जीवन नीरस है – फीका है। यही रामरस उसका स्वाद बनाए रहा और बनाए रहेगा। राम ही का मुख देख हिन्दू जनता का इतना बड़ा भाग अपने धर्म और जाति के घेरे में पड़ा रहा। न उसे तलवार काट सकी, न धन-मान का लोभ, न उपदेशों की तड़क-भड़क। -- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल “गोस्वामी तुलसीदास” नामक अपनी पुस्तक में
  • है राम के वजूद पे हिन्दोस्ताँ को नाज़
अहल-ए-नज़र समझते हैं इस को इमाम-ए-हिंद -- अलम्मा इक़बाल

रामराज्य

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राम राज बैठे त्रैलोका। हरषित भए गए सब सोका॥
बयरु न कर काहू सन कोई। राम प्रताप विषमता खोई॥
दैहिक दैविक भौतिक तापा। राम राज नहिं काहुहि ब्यापा॥
अल्पमृत्यु नहिं कवनिउ पीरा। सब सुंदर सब बिरुज सरीरा॥
नहिं दरिद्र कोउ दुखी न दीना। नहिं कोउ अबुध न लच्छन हीना॥
सब गुनग्य पंडित सब ग्यानी। सब कृतग्य नहिं कपट सयानी॥
राम राज नभगेस सुनु सचराचर जग माहिं।
काल कर्म सुभाव गुन कृत दुख काहुहि नाहिं॥ -- रामचरितमानस

सन्दर्भ

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इन्हें भी देखें

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