• केयूराणि न भूषयन्ति पुरुषं हारा न चन्द्रोज्ज्वलाः
न स्नानं न विलेपनं न कुसुमं नालङ्कृता मूर्धजाः।
वाण्येका समलङ्करोति पुरुषं या संस्कृता धार्यते
क्षीयन्ते खलु भूषणानि सततं वाग्भूषणं भूषणम्॥ -- भर्तृहरि, नीतिशतक
इस धरती पर पुरुषों (मनुष्यों) की सुन्दरता न तो बाजूबन्द पहनने से और न ही चन्द्रमा के समान उज्ज्वल कांति वाले मोतियों की माला ही पहनने से बढ़ती है। न स्नान से, न सुगंधित पदार्थों के लेपन से, न फूलों की सज्जा से, न ही बालों को बनाने से ही (मनुष्य की सुन्दरता में वृद्धि होती है)। एकमात्र संस्कारित वाणी अपनाने से ही मनुष्य के सौन्दर्य को बढ़ाती है। सभी प्रकार के आभूषण समयान्तराल के बाद नष्ट ही हो जाते हैं, किन्तु मधुर/सारगर्भित/कल्याणकारी वाणी ही सदैव मनुष्य का आभूषण होती है।
  • प्रियवाक्य प्रदानेन सर्वे तुष्यन्ति जन्तवः ।
तस्मात् तदेव वक्तव्यं , वचने का दरिद्रता ॥
प्रिय वाणी बोलने से सभी जन्तु खुश हो जाते है । इसलिये मीठी वाणी ही बोलनी चाहिये , वाणी में क्या दरिद्रता ?
  • वाणी रसवती यस्य यस्य श्रमवती क्रिया ।
लक्ष्मी दानवती यस्य सफलं तस्य जीवितम् ॥
जिस मनुष्य की वाणी मीठी है, जिसका कार्य परिश्रम से युक्त है, जिसका धन दान करने में प्रयुक्त होता है, उसका जीवन सफल है।
  • सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयात् न ब्रूयात् सत्यमप्रियं।
प्रियं च नानृतं ब्रूयात् एष धर्मः सनातनः॥
सत्य बोलें, प्रिय बोलें पर अप्रिय सत्य न बोलें और प्रिय असत्य न बोलें। यह सनातन रीति है।
  • सुलभाः पुरुषा राजन् सततं प्रियवादिनः ।
अप्रियस्य च पथ्यस्य वक्ता श्रोता च दुर्लभः॥ -- वाल्मीकि रामायण, अरण्यकाण्ड, ३७वां सर्ग ; महाभारत, श्लोक 5.37.14
हे राजन ! सतत प्रिय बोलने वाले पुरुष तो आसानी से मिल जाते हैं, किन्तु अप्रिय पथ्य को कहने वाला और सुनने वाला दोनों दुर्लभ हैं।
  • उष्ट्राणां च विवाहेषु गीतं गायन्ति गर्दभाः ।
परस्परं प्रशंसन्ति अहो रूपमहो ध्वनिः ॥ -- महासुभषितसंग्रह
ऊँटों के विवाह में गधे गीत गा रहे हैं। वे एक-दूसरे की प्रशंसा कर रहे हैं। (गधे कह रहे हैं) अहा! क्या रूप है!, (ऊँट कह रहे हैं ) अहा क्या ध्वनि है!
  • उपरोक्त श्लोक का पाठान्तर भी है-
उष्ट्राणां लग्नवेलायां गर्दभा मन्त्रपाठकाः।
परस्परं प्रशंसन्ति अहो रूपमहो ध्वनिः॥
  • वर्णाकारप्रतिध्वानैर्नेत्रवक्त्रविकारतः ।
अप्यूहन्ति मनो धीरास्तस्माद्रहसि मन्त्रयेत् ॥ -- हितोपदेश ३.३४
बुद्धिमान लोग दूसरों के शरीर के रंग से, हाव-भाव और प्रतिध्वनि से, नेत्र और मुख के आकृति से उनके विचारों को समझ लेते हैं। इसलिये मन्त्रणा एकान्त में करनी चाहिये।
  • तुलसी मीठे बचन तें , सुख उपजत चहुँ ओर ।
वशीकरण इक मंत्र है , परिहहुँ बचन कठोर ॥ -- तुलसीदास
  • ऐसी बानी बोलिये , मन का आपा खोय ।
औरन को शीतल लगे , आपहुँ शीतल होय ॥ -- कबीरदास
  • मधुर वचन है औषधी , कटुक वचन है तीर ।
श्रवण मार्ग ह्वै संचरै , शाले सकल शरीर ॥ -- कबीरदास
  • नम्रता और मीठे वचन ही मनुष्य के सच्चे आभूषण होते हैं। -- तिरूवल्लुवर
  • नरम शब्दों से सख्त दिलों को जीता जा सकता है। -- सुकरात
  • अप्रिय शब्द पशुओं को भी नहीं सुहाते हैं। -- बुद्ध
  • खीरा सिर ते काटिये , मलियत लौन लगाय ।
रहिमन करुवे मुखन को , चहिये यही सजाय ॥ -- रहीम
  • शब्द सम्हारै बोलिए, शब्द के हाथ न पाँव।
एक शब्द औषधि करे, एक करे घाव।
  • कागा काको धन हरै, कोयल काको देत ।
मीठा शब्द सुनाए के, जग अपनो कर लेत।
  • सचिव बैद गुरु तीनि जौं, प्रिय बोलहिं भय आस।
राज धर्म तन तीनि कर, होई बेगहिं नास॥ -- तुलसीदास
  • ऐक शब्द सों प्यार है, ऐक शब्द कू प्यार।
ऐक शब्द सब दुसमना, ऐक शब्द सब यार॥
  • दौनों रहिमन एक से, जौ लौं बोलत नाहिं।
जान परत है काक पिक, ऋतु बसंत के माहिं॥


  • कड़वी बात भी हँस कर कही जाए तो मीठी हो जाती है। -- प्रेमचंद
  • कठोर वचन बुरा है क्योकि तन-मन को जला देता है और मृदुल वचन अमृत वर्षा के समान हैं। -- कबीर
  • कितना भी दुःखद विषय हो, उसकी चर्चा कठोर भाषा में नहीं करनी चाहिए। -- महात्मा गांधी
  • कटु वचन कहने से अच्छा है कि मौन रहा जाए। -- अज्ञात
  • मनुष्यों के पास धन-दौलत के अंबार हो सकते है लेकिन बुद्धिमान मनुष्य की वाणी तो अनमोल होती हैं। -- बाइबिल
  • मनुष्य की वाणी से उसके गुण और अवगुण जाने जा सकते हैं। -- शेख सादी
  • कम बोलने से मन की शक्ति बढ़ती है। -- महात्मा विदुर
  • कटु वचन दुसरे के मर्म स्थान पर चोट करते हैं और बदले में वह श्राप देता है, जो निष्फल नहीं जाता। -- वेद व्यास
  • कभी-कभी मौन रह जाना सबसे तीखी आलोचना होती हैं। -- अज्ञात
  • मौन से अच्छा भाषण दूसरा नहीं। -- फिर भी बोलना पड़े तो जहाँ एक शब्द से काम चलता हो वहां दूसरा शब्द न बोलें। -- महात्मा गांधी
  • हम जो कुछ बोलें, उसमें बल होना चाहिए। -- सरदार पटेल
  • वाणी से भी बाणों की वर्षा होती है। -- जिस पर इसकी बौछारें पड़ती हैं, वह दिन-रात दुःखी रहता है। -- वाल्मीकि
  • बोलना शिष्टाचार है और शिष्टाचार में सच और ईमानदारी होना आवश्यक है। -- इमर्सन
  • न्यून वाणी मूर्खो की समझ में नहीं आती और अधिक बोलना विद्वानों को उद्विगन करता है। -- धनंजय
  • मधुर वचन सुनने में भी और कहने में भी प्रसन्नता देते हैं। -- लेकिन मधुर वचन अहंकार त्याग से ही संभव है। -- कबीर
  • प्रिय होने पर भी जो वचन हितकर न हो, उसे न कहें। -- हितकर कहना ही अच्छा है। -- चाहे वह सुनने में अत्यंत अप्रिय ही क्यों न हो। -- विष्णु पुराण
  • जीभ को जीत लेना सब वस्तुओं को जीत लेने के बराबर है। -- महात्मा गांधी
  • जब मन और वाणी एक होकर कोई चीज मांगते है, तब उस प्रार्थना का फल अवश्य मिलता है। -- स्वामी रामकृष्ण
  • झूठा वादा करने से विनम्र इन्कार करना अच्छा है। -- टॉलस्टाय
  • मौन और एकांत पवित्र आत्मा के सर्वोत्तम मित्र हैं। -- विनोबा भावे
  • जहाँ मनुष्य की जिह्वा बोलने में असमर्थ हो जाती हैं, वहां पत्थर बोलना प्रारम्भ कर देते हैं। -- स्वामी रामतीर्थ
  • नम्रता और मीठे वचन ही मनुष्य का आभूषण हैं। -- स्वामी विवेकानंद
  • जो अपने मुख और जिह्वा पर संयम रखता है, वह अपनी आत्मा को संतापों से बचाता है। -- बाइबिल
  • वार्तालाप बुद्धि को मूल्यवान बना देता है, परन्तु एकांत प्रतिभा की पाठशाला है। -- गिबन
  • अगर झूठ बोने से किसी की जान बचती है तो झूठ बोलना पाप नहीं। -- प्रेमचंद
  • अधिक देखे, अधिक सुनें, किन्तु बोलें कम। -- गुरू नानक देव
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