प्रकाशितकोशों से अर्थ

शब्दसागर

अभ्यास ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. बार बार किसी काम को करना । पुर्णाता प्राप्त करने के लिये फिर फिर एक ही क्रिया का अवलंबन । अनुशीलन । साधन । आवृत्ति । मश्क । उ॰— (क) करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान । रसरी आवत जात ते सिल पर परत निसान । सभा वि॰ (शब्द॰) । क्रि॰ प्र॰—करना । होना ।

२. आदत । रब्त । बान । टेव । जैसे—उन्हें तो गाली देने का अभ्यास पड़ गया है (शब्द॰) । क्रि॰ प्र॰—पड़ना ।

३. प्राचीनों के अनुसार एक काव्यालंकार जिसमें किसी दुष्कर बात को सिद्ध करनेवाले का कथन हो । उ॰—हरि सुमिरन प्रहबाद किय, जरयो, न अगिन मँझार । गयो गिरायो गिरिहु ते, भयो न बाँको बार (शब्द॰) । कुछ लोग ऐसं कथन में चमत्कार न मान उसे अलंकार नहीं मानते ।

४. अनुशासन (को॰ ) ।

५. पडोस (को॰) ।

६. गुरान (को॰) ।

७. संगीत में एक ही पद की बार बार आवृत्ति । टेक [को॰] ।

अभ्यास ^२— पु वि॰ [सं॰ अभ्याश] समीप । निकट । —अनेकार्थ॰ ।

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