संज्ञा

स्तर, पड़ाव

प्रकाशितकोशों से अर्थ

शब्दसागर

चरण संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. पग । पैर । पाँव । कदम । यौ॰—चरणपादुका । चरणपीठ । चरणवदन = चरण छूना । चरणसेवा = बड़ों की सेवा शुश्रूषा । मुहा॰—चरण छूना = दंडपत या प्रणाम आदि करना । बडे़ का अभिवादन करना । चरण देना = पैर रखना । उ॰—जेहि गिरि चरश देइ हनुमंता ।—तुलसी (शब्द॰) । चरण पड़ना = आगमन होना । कदम जाना । जैसे—जहँ जहँ चरण पडैं संतन के तहँ तहँ बंटाधार ।—(शब्द॰) । चरण लेना = पैर पड़ना । पैर छूकर प्रणाम करना ।

२. बड़ों का सांनिध्य । बड़ों की समीपता । बड़ों का संग । उ॰—ग्वाल सखा कर जोरि कहत है हमहिं श्याम तुम जनि बिसरायहु । जहाँ जहाँ तुम देह धरत हौं तहाँ तहाँ जनि चरण छुडायहु ।—सूर (शब्द॰) । क्रि॰ प्र॰—में आना ।—में रखना ।—में रहना ।—छूटना ।— छोडना ।

३. किसी छंद, श्लोक या पद्य आदि का एक पद । दल । यौ॰—चरणगुप्त ।

४. किसी पदार्थ का चतुर्थांश । किसी चीज का चौथाई भाग । जेसे,—नक्षत्र का चरण, युग का चरण आदि ।

५. मूल । जड़ ।

६. गोत्र ।

७. क्रम ।

८. आचार ।

९. विचरण करने का स्थान । घूमने की जगह ।

१०. सूर्य आदि की किरण ।

११. अनुष्ठान ।

१२. गमन । जाना ।

१३. भक्षण । चरने का काम ।

१४. नदी का वह भाग जो तटवर्ती पर्वत, गुफा आदि तक चला गया हो (को॰) ।

१५. वेद की कोई शाखा (को॰) ।

१६. खंभा । स्तंभ (को॰) ।

१७. किसी संप्रदाय का विहित कर्म (को॰) ।

१८. आधार । सहारा (को॰) ।

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