दर्शन
संज्ञा
प्रकाशितकोशों से अर्थ
शब्दसागर
दर्शन संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. वह बोध जो दृष्टि के द्वार हो । चाक्षुष ज्ञान । देखादेखी । साक्षात्कार । अवलोकन । क्रि॰ प्र॰—करना ।—होना । मुहा॰— दर्शन देना = देखने में आना । अपने को दिखाना । प्रत्यक्ष होना । दर्शन पाना = (किसी का) साक्षात्कार होना । विशेष— हिंन्दी काव्य में नायक नायिका का परस्पर दर्शन चार प्रकार का माना गया है— प्रत्यक्ष, चित्र, स्वप्न और श्रवण ।
२. भेंट । मुलाकात । जैसे,— चार महीने पीछे फिर आपके दर्शन करूँगा । विशेष— प्राय बड़ों के ही प्रति इस अर्थ में इस शब्द का प्रयोग होता है ।
३. वह शास्त्र जिससे तत्वज्ञान हो । वह विद्या जिससे तत्वज्ञान हो । वह विद्या जिससे पदार्थों के धर्म, कार्य- कारण- संबंध आदि का बोध बोध हो ।