प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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प्रयोग संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. आयोजन । अनुष्ठान । साधन । किसी कार्य में योग । किसी काम में लगना ।

२. किसी काम में लाया जाना । व्यवहार । इस्तेमाल । बरता जाना । जैसे, बल का प्रयोग करना, बिजली का प्रयोग करना, जल का प्रयोग करना, शब्द का प्रयोग करना । उ॰—रस है बहुत परंतु सखि, विष है विषम प्रयोग । —साकेत, पृ॰ २५२ ।

३. प्रक्रिया । अमल । क्रिया का साधन । विधान । जैसे,— (क) उस वैज्ञानिक ने रसायन के बहुत से प्रयोग दिखाए । (ख) केवल पुस्तक पढ़ने से व्यवहार ज्ञान न होगा, प्रयोग देखो । यौ॰—प्रयोगज्ञ । प्रयोगचतुर । प्रयोगनिपुण । प्रयोगविधि = प्रयोग बतानेवाली पद्धति या प्रयोग करने की विधि । प्रयोगवीर्य = प्रयोग की शक्ति । प्रयोगशाला । प्रयोग- शास्त्र =कल्पसुत्र ।

४. तात्रिक उपचार या साधन जो बारह कहे जाते है—मारण, मोहन, उच्चाटन, कीलन, विद्धेषण, कामनाशान, स्तभन, वशीकरण, आकर्षण, बंदिमोचन, कामपूरण और वाकप्रसारण ।

५. अभिनय । नाटक का खेल । स्वाँग भरना ।

६. रोगी के दोषों तथा देश, काल और अग्नि का विचारकर औषध की व्यवस्था । उपचार ।

७. यज्ञादि कर्मों के अनुष्ठान का बोध करनेवाली विधि । पद्धति ।

८. द्दष्टांत । निदर्शन ।

९. साम, दंड आदि उपायों का अवलंबन ।

१०. धन की वृद्धि के लिये ऋणदान । रुपया बढ़ने के लिये सुद पर दिया जाना ।

११. घोड़ा ।

१२. अनुमान के पाँचों अवयवों का उच्चारण ।

१३. प्रक्षेपण । फेंकना (को॰) ।

१४. प्रांरभ । शुरुआत (को॰) ।

१५. परिणाम । फल (को॰) ।

१६. संमिश्रण । संबद्धता (को॰) ।

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