रेशम से कपड़े बुनते हुए महिलाएं

प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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रेशम संज्ञा पुं॰ [फ़ा॰]

१. एक प्रकार का महीन चमकीला और दृढ़ तंतु या रेशा जिससे कपड़े बुने जाते हैं । यह तंतु कोश में रहनेवाले एक प्रकार के कीड़े तैयार करते हैं । विशेष—रेशम के कीड़े पिल्लू कहलाते हैं और बहुत तरह के होते हैं: जैसे,—विलायती, मदरासी या कनारी, चीनी, अराकानी, आसामी, इत्यादि । चीनी, बूलू और बड़े पिल्लू का रेशम सबसे अच्छा होता है । ये कीड़े तितली की जाति के हैं । इनके कई कार्याकल्प होते हैं । अंडा फूटने पर ये बड़े पिल्लू के आकार में होते हैं और रेंगते हैं । इस अवस्था में ये पंत्तियाँ बहुत खाते हैं । शहतूत की पत्ती इनका सबसे अच्छा भोजन है । ये पिल्लू बढ़कर एक प्रकार का कोश बनाकर उसके भीतर हो जाते हैं । उस समय इन्हें कोया कहते हैं । कोश के भीतर ही यह कीड़ा वह तंतु निकालता है, जिसे रेशम कहते हैं । कोश के भीतर रहने की अवधि जब पूरी हो जाती है, तब कीड़ा रेशम को काटता हुआ निकलकर उड़ जाता है । इससे कीड़ े पालनेवाले निकलने के पहले ही कोयों को गरम पानी में डालकर कीड़ों को मार डालते हैं और तब ऊपर का रेशम निकालते हैं । पर्या॰—कौशेय । पाट । कोशा ।

२. रेशम का सूत. रेशा वा बुना हुआ वस्त्र । यौ॰—रेशम की या रेशमी गाँठ = वह ग्रंथि, उलझन वा समस्या जो जल्दी सुलझ न सके । कोई कठिन काम । रेशमी लच्छा = एक मिष्ठान्न ।

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