लाल

संज्ञा

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विशेषण

लाल

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प्रकाशितकोशों से अर्थ

शब्दसागर

लाल ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰ लालक]

१. छोटा और प्रिय बालक । प्यारा बच्चा ।

२. बेटा । पुत्र । लड़का । उ॰—(क) जसुमति माय लाल अपने को शुभ दिन डोल झुलायो । फगुवा दियो सकल गोपिन को भयो सबन मन भायो ।—सूर (शब्द॰) । (ख) केहिके अब मैं शरणै जावों । बोलौ लाल बहुत दुख पावों ।— विश्राम (शब्द॰) ।

३. प्रिय व्यक्ति । प्यारा आदमी । उ॰— (क) आजु यासों बोलि चालि हँसि खेलि लेहु लाल काल्हि ऐसी ग्वारि लाऊँ काम की कुमारी सी ।—केशव (शब्द॰) । (ख) बरनत कबि जोहै मुग्धा के भेदन में ललिता ललित सों प्रघट लाल लखि लेहु ।—रघुनाथ (शब्द॰) ।

४. प्रणयी । प्रेमी । उ॰—(क देत जताए प्रगट जो जावक लागौ भाल । नव नागरि के नेह सों भले बने हौ लाल ।—रसनिधि (शब्द॰) । (घ) मेरेई उर गड़ि गए तेरेई द्दग लाल । जनि पतियाउ लखौ इन्है दरपन लैकै लाल ।—रसनिधि (शब्द॰) । विशेष—इस शब्द का प्रयोग प्रायः कविता और बोलचाल में किसी प्रिय व्यक्ति के लिये संबोधन के रूप में होता है ।

४. श्रीकृष्ण चंद्र का एक नाम । उ॰—सुमन कुंज विहरत सदा दै गलवाँही माल । वंदौं चरन सरोज नित जुगुल लाडिली लाल ।—मन्नालाल (शब्द॰) ।

लाल ^२ संज्ञा पुं॰ [सं॰ लालन] दुलार । लाड़ । प्यार । उ॰— जो बन सायर मुझते रसिया लाल कराय । अब कबीर पाँजी परे पंथी आवहिं जाय ।—कबीर (शब्द॰) ।

लाल ^३ संज्ञा पुं॰ [सं॰ लाला] पतला थूक जो प्रायः बच्चों और वृद्धों के मुँह से बहा करता है । लाला । लार ।

लाल पु † ^४ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ लालसा] लालसा । इच्छा । अभिलाषा । चाह । उ॰—(क) मुभ्र कलाई अति बनी सुभ्रजघ गज चाल । सोरह श्रृंगार वरन के करहिं देवता लाल ।—जायसी (शब्द॰) (ख) सुर नर गंध्रव लाल कराहीं । उलटे चलहिं स्वर्ग कहँ जाहीं ।—जायसी (शब्द॰) ।

लाल ^५ संज्ञा पुं॰ [फा़॰] मानिक या माणिक्य नाम का रत्न । विशेष दे॰ 'मानिक' । उ—(क) कंचन के खंभ मयारि मरुवा- डाँडी खचि हीरा विच लाल प्रबाल ।—सूर (शब्द॰) । (ख) यह ललित लाल कैधौं लसत दिग्भामिनि के भाल को ।— केशव (शब्द॰) । (ग) कुंदन सीद यह बाल कौं हीरा लाल लगाइ । रतन जटित की दुति तबै लीला द्दग सरसाइ ।— रसनिधि (शब्द॰) । (घ) नख नग जाल लाल अंगुलि प्रबाल माल नूपुर मराल ये अनूप रव नाँउड़े ।—देव (शब्द॰) । मुहा॰—लाल उगलना = बहुत अच्छी और प्यारी बातें कहना । मीठी और सुंदर बातें कहना ।

लाल ^६ वि॰

१. मानिक, बीरबहुटी या लहू आदि के रंग का । रक्त वर्ण । सुर्ख । उ॰—(क) लोचन लाल विसाल चारु मंदार माल गर ।—गोपालचंद्र (शब्द॰) । (ख) फूल फूले हैं क्या ही रंगीले । कोई ऊजरो कोई लाल पीले ।—सं॰ शाकुं॰ (शब्द॰) । (ग) कौन दियो यह भाल मैं लाल गुलाब को फूल कहौ कहँ पायौ ।—मिश्विमेध (शब्द॰) । यौ॰—लाल अंगारा या लाल भभूका = जो जलने आदि के कारण अंगारों की तरह लाल रंग का हो गया हो । ताप के कारण बहुत अधिक लाल । लाल बिंब = बहुत अधिक लाल ।

२. जिसका चेहरा क्रोघ के मारे तमतमा गया हो । जिसके चेहरे से गुस्सा मालूम होता हो । बहुत अधिक कुद्ध । जैसे,—बातों बातों में लाल क्यों होते हो ? मुहा॰—लाल आँखें निकालना या दिखाना = क्रोघ से आँखें लाल करना । गुस्से से देखना । लाल पड़ना या होना = क्रुद्ध होना । नाराज होना । उ॰—दशरथ लाल ह्वै कराल कछु लाल परि, भाषत भयोई नेनु रावणै न गनहौं ।—पद्माकर (शब्द॰) । लाल पीले होना = गुस्सा होना । क्रोध करना । उ॰—हैं हैं ! एक बारगी इतने लाल पीले हो गए ।—हरिश्चंद्र (शब्द॰) । लाल हो जाना = क्रोध में भर जाना । गुस्से में होना । लाल होना = क्रुद्ध होना । नाराज होना ।

३. (चौसर के खेल में गोटी) जो चारो ओर से घूमकर बिलकुल बीच के खाने में पहुँच गई हो, और जिसके लिये कोई चाल बाकी न रह गई हो ।

४. (चौसर के खेल में खिलाड़ी) जिसकी सब गोटियाँ बीच के घर में पहुँच गई हों और जिसे कोई चाल चलना बाकी न रह गया हो । (ऐसा खिलाड़ी जीता हुआ समझा जाता है ।)

५. जो खेल में औरों से पहले जीत गया हो (खेलाड़ी) । मुहा॰—लाल होना = (१) बहुत अधिक संपत्ति पाकर संपन्न होना । निहाल होना । जैसे, उस मकान में गड़ा हुआ खजाना पाकर वह लाल हो गया । (२) चौसर आदि के खेल में जीत जाना ।

लाल ^७ संज्ञा पुं॰ एक प्रसिद्ध छोटी चिड़िया । लालमुनी । रायमुनी । उ॰—(क) तूती लाल कर करे सारस झगर तोते तीतर तुरमनी बटेर गाहियत हैं ।—रघुनाथ (शब्द॰) । (ख) लालन को पिंजरा कर लाल लिए प्रति कुंजन कुंजन ज्वै रहे ।—जसवंत (शब्द॰) । विशेष—इसका शरीर कुछ भूरापन लिए लाल रंग का होता है और जिसपर छोटी छोटा सफेद बुंदकियाँ पड़ी रहती है । यह बहुत कोमल और चंचल होता है और इसकी बोली बहुत प्यारी होती है । लोग इसे प्रायः पालते है । इसकी मादा को 'मुनियाँ' कहते हैं ।

२. चौपायों के मुँह का एक रोग ।

लाल अंबारी संज्ञा स्त्री॰ [हिं॰ लाल + अंबारी] एक प्रकार का पटुआ जिसके बीज दवा में काम आते हैं ।

२. पटसन की जाति का एक प्रकार का पौधा जिसे पटवा भी कहते हैं । विशेष दे॰ 'पटवा' ।

लाल अगिन संज्ञा पुं॰ [हिं॰ लाल + अगिन] प्रायः एक बालिश्त लंबा भूरे रंग का एक प्रकार का अगिन पक्षी । विशेष—इस पक्षी का गला नीचे की ओर सफेद होता है । यह मघ्य भारत तथा उड़ीसा में अधिकता से पाया जाता है; और घास फूस से प्याले के आकार का घोंसला बनाकर उसमें चार तक अंडे देता है ।

लाल आलू संज्ञा पुं॰ [हिं॰ लाल + आलू]

१. रतालू ।

२. अरुई ।

लाल हलायची संज्ञा स्त्री॰ [हिं॰ लाल + इलायची] बड़ी इलायची । विशेष दे॰ 'इलायची' ।

लाल कच्चू संज्ञा पुं॰ [हिं॰ लाल + कच्चू] गजकर्ण आलू । बंड़ा ।

लाल कलमी संज्ञा पुं॰ [हिं॰ लाल + कलमी] चाँदनी या गुल- चाँदनी नाम का पौधा या उसका फूल ।

लाल घास संज्ञा स्त्री॰ [हिं॰ लाल + घास] गोमूत्र नामक तृण ।

लाल चंदन संज्ञा पुं॰ [हिं॰ लाल = चंदन] एक प्रकार का चंदन । रक्त चंदन । देवी चंदन । विशेष—लाल चंदन का पेड़ कद में छोटा होता है और यह मैसूर प्रांत तया अरकाट में बहुतायत से पाया जाता है । इसके ऊपर की लकड़ी सफेद और हीर की लकड़ी कुछ कालापन लिए लाल होती है । इसे घिसने से बहुत ही लाल रंग और अच्छी सुगंध निकलती है । यह भी चंदन की तरह माथे पर लगाया जाता हौ । विशेष दे॰ 'चंदन' ।

लाल चकवी संज्ञा पुं॰ [सं॰ लालिक] भैंसा । (डिं॰) ।

लाल चीता संज्ञा पुं॰ [हिं॰ लाल + चीता] लाल फूल का चित्रक या चीता । विशेष दे॰ 'चीता' ।

लाल चीनी संज्ञा पुं॰[हिं॰ लाल + चीनी] एक प्रकार का कबूतर, जिसका सारा शरीर सफेद और सिर पर लाल छिटकियाँ होती हैं ।

लाल दाना संज्ञा पुं॰ [हिं॰ लाल + दाना] लाल रंग का पोस्ते का दाना । लाल खसखस । (पूरब) ।

लाल पिलका संज्ञा पुं॰ [हिं॰ लाल + पिलका] लाल रंग का एक प्रकार का कबूतर जिसकी दुप और डैने सफेद होते हैं ।

लाल बुझक्कड़ संज्ञा पुं॰ [हिं॰ लाल + बूझना] बातों का अटकल- पच्चू मतलब लगानेवाला । वह जो कोई बात जानता तो ना हो, पर यों ही अंदाज हो । (व्यंग्य) ।

लाल ^४ वि॰ [हिं॰ लाल] लाल रंग का । विशेष दे॰ 'लाल' । उ॰— (क) पारथ भयो विलोचन लाला । लाखि अनर्थक धर्म भुवाला ।—सबल (शब्द॰) । (ख) केकी के काकी कका कोक कीक का कोक । लोल लालि लोलै लली लाला लीला लोल ।—केशव (शब्द॰) ।

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